Tuesday, February 8, 2011

वसंत के पावन अवसर पर सभी को अनंत शुभकामनाएँ


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला| या शुभ्रवस्तावृता|


या वीणावरदंडमंडितकरा| या श्वेतपद्मासना||

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभितिभिर्देवैःसदावंदिता|

सामांपातु सरस्वतीभगवती निःशेषजाड्यापहा||



सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है । उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है । वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है । लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है । शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है । पशु को मनुष्य बनाने का - अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है । मनन से मनुष्य बनता है । मनन बुद्धि का विषय है । भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है । इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है । शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए ।


 वसंत ऋतु में मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास भरने लगते हैं। यूँ तो माघ का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है, पर वसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए कुछ खास महत्व रखता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है, इसलिए इस दिन मा शारदे की पूजा कर उनसे ज्ञानवान, विद्यावान होने की कामना की जाती है। वहीं कलाकारों में इस दिन का विशेष महत्व है। कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार अपने उपकरणों की पूजा के साथ माँ सरस्वती की वंदना करते हैं।



Wednesday, January 19, 2011

विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) की रेडियो वार्ता

डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) रेडियों स्टुडियों में  विश्व हिन्दी दिवस के विशेष संदर्भ पर 

रेडियो जोकी अमित के साथ डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) रेडियों स्टुडियों में।

हिन्दी साहित्य परिषद अतिथि व्याख्यान-माला-3


हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक  एवं अध्यक्ष डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) आयोजित विषय पर वक्तव्य करते हुए। साथ में  डॉ.  नीरा नाहटा


डा. नीरा नाहटा अतिथि व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए।

डा. नीरा नाहटा अतिथि व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए।




हिन्दी साहित्य परिषद अतिथि व्याख्यान-माला -2


हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं अध्यक्ष डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) अतिथि प्रस्तावना देते हुए।
साथ में प्रा. कन्नन एवं डॉ. मंजूला देसाई।


हिन्दी विभाग छात्रा  एवं हिन्दी साहित्य परिषद की महासचिव भारती यादव अतिथि परिचय देते हुए।

प्रा. कन्नन , डॉ. मंजुला देसाई एवं डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) 

प्रा. कन्नन , डॉ. मंजुला देसाई एवं डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) 

डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) विद्यार्थियों के साथ

Saturday, October 23, 2010

हिन्दी की प्रमुख हिन्दी सेवी संस्थान

भारत में हिन्दी की सेवा में तमाम संस्थान अपने-अपने तरीके से कार्यरत है इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।


नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्लीस्थापना : सन् १९७५ ई.
       विनोबा भावे के सत्प्रयासों से सन् १९७५ में 'नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली' की स्थापना हुई।
उद्देश्य :       इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है - भारतीय भाषाओं को एक सूत्र में बॉंधने हेतु नागरी का संपर्क लिपि के रूप में विकास करना, इस परिषद् का मुख्य ध्येय है। नागरी लिपि की उपयोगिता और उसकी सरलता की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करना। परिषद् इस बात पर भी जोर देती है कि बोलियों और प्रादेशिक भाषाओं की प्रस्तुति नागरी लिपि के माध्यम से हो। भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं को नागरी के माध्यम से सिखाने के लिए परिषद् ने अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं। इसके अतिरिक्त परिषद् द्वारा कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन भी आयोजित किये हैं।
प्रकाशित पत्रिका : नागरी संगम,(त्रैमासिक), प्रधान संपादक : डॉ. परमानन्द पांचाल
पता : नागरी लिपि परिषद्, १९, गांधी स्मारक निधि, राजघाट, नई दिल्ली-११०००२     

साहित्य मंडल, नाथद्वारा(राजस्थान)
स्थापना : सन् १९३७ ई.
उद्देश्य :
        हिन्दी सेवी संस्थाओं में साहित्य मंडल, नाथद्वारा का महत्वपूर्ण स्थान है। इस संस्था ने हिन्दी के उन्नयन तथा हिन्दी सेवियों को जोड़ने का स्तुत्य प्रयास किया है। प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को आयोजित 'अंग्रेजी हटाओ' आंदोलन से हिन्दी जगत को जगाने हेतु 'उठो, जागो और अपने आपको पहचानो' मूल मंत्र का शंखनाद किया जाता है। अष्टछापीय कवियों की संपूर्ण वाणी तथा समीक्षाऍं पुस्तकाकार रूप में छापकर इस संस्था ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। त्रैमासिक पत्रिका 'हरसिंगार' के माध्यम से यह संस्था हिन्दी की अभूतपूर्व सेवा कर रही है।
संस्था की गतिशील प्रवृत्तियॉं :
       संस्था के केन्द्रीय पुस्तकालय में लगभग ५०,००० पुस्तकों, अनेक हस्तलिखित ग्रथों एवं साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्र-पत्रिकाओं से विनिर्मित जिल्दों का अपूर्व संग्रह है। इसके अतिरिक्त चौपाटी पर संचालित बाल पुस्तकालय में लगभग १३००० पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त संस्था के वाचनालय में सम्पूर्ण देश से आने वाली, विभिन्न विषयों से विभूषित लगभग २०० से भी अधिक पत्र-पत्रिकाओं से युक्त श्रीनाथद्वारा का यह अनोखा संग्रह है। इसके अलावा संस्था द्वारा रंगमंचीय कार्यक्रम, ब्रजभाषा समारोह, साहित्य संगोष्ठी, आदि आयोजित कराए जाते हैं। संस्था का अष्टछाप कक्ष, पत्रिका कक्ष, साहित्यकार कक्ष, पत्रिका प्रदर्शनी कक्ष भी ज्ञानवर्धक और दर्शनीय है।
       संस्था द्वारा प्रतिवर्ष १४ सितम्बर के अवसर पर देश के राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़े हिन्दीसेवियों, साहित्यकारों एवं संपादकों को सम्मान किया जाता है। इस अवसर पर संस्था द्वारा आयोजित विशाल रैली प्रमुख आकर्षण का केन्द्र रहती है। इसमें विद्यालय के बच्चे, शिक्षक, शिक्षिकाओं, संस्था के कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त सारे देश से पधारे हुए अतिथिगण एवं श्रीनाथद्वारा के गणमान्य नागरिक सम्मिलित रहते हैं। इस विशाल रैली का नेतृत्व संस्था के प्रधानमंत्री श्री भगवतीप्रसाद देवपुरा करते हैं। यह विशाल रैली विद्यालय के बाल-बैंड की अगुआई में श्रीनाथद्वारा का भ्रमण कर राष्ट्रभाषा अपनाने एवं अंग्रेजी से मुक्ति का संदेश देती है।
       संस्था का एक विद्यालय भी है। इसके कक्षा-कक्ष फर्नीचर, विद्युत पंखों आदि से सुव्यवस्थित हैं तथा परिसर सुरम्य वाटिका एवं खेल मैदानों से युक्त है।

पत्रिका प्रकाशन : 
हरसिंगार(त्रैमासिक), संपादक : श्री भगवतीप्रसाद देवपुरा।

पता : 
प्रधानमंत्री, साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा-३१३३०१(राजस्थान)

राजभाषा संघर्ष समिति, दिल्ली 
स्थापना : राजभाषा संघर्ष समिति की स्थापना का विचार बुराड़ी (दिल्ली) में आयोजित अखिल भारतीय आर्यवीर दल महासम्मेलन के अवसर पर दिनांक ४.१०.९८ को तथा इसका औपचारिक गठन और कार्यकारिणी की विधिवत् घोषणा दिनांक ११.१०.९८ को श्री आनन्द स्वरूप गर्ग के निवास स्थान पर की गई थी।
         स्थापना की पृष्ठभूमि : दिल्ली में श्री साहिब सिंह वर्मा की निवर्तमान भाजपा सरकार के अनेक आश्वासनों और घोषणाओं के बावजूद केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री लालकृष्ण आडवाणी के निर्देश पर दिल्ली राजभाषा विधेयक सत्र व विधानसभा के अन्तिम दिन दिनांक ३०.९.९८ को भी प्रस्तुत न करके जब जनभाषा की उपेक्षा की, तो दिल्ली में हिंदी के लिए अहर्निश समर्पित कार्यकर्त्ताओं ने अपने को भाजपा द्वारा ठगा हुआ महसूस किया और उनके मन में अपने ही लोगों के प्रति उफान आना स्वाभाविक था। इस कार्य को अगली सरकार से करवाने के एवं शासन के हर स्तर पर राजभाषा हिन्दी लागू करवाने के उद्देश्य से इस समिति की स्थापना की गई।
उद्देश्य :
१. भारत राष्ट्र और उसके समस्त नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक कल्याण को बढ़ावा देना।
२. भारत संघ के अधीन स्थापित केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, संघ शासित क्षेत्रों, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभाओं, विधानपरिषदों, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों, जिला व सत्र अदालतों, दूतावासों, शिक्षण-संस्थाओं तथा अन्य समस्त राज्य-शासित, अर्धराज्य-शासित सरकारी सहायता अथवा अनुदान प्राप्त स्वशासी निकायों, निगमों, आयोगों, परिषदों, उपक्रमों, प्रतिष्ठानों, संस्थानों, प्राधिकरणों, बोर्डों, न्यायाधिकरणों, विश्वविद्यालयों, शिक्षा संस्थानों, औषधालयों, अनुसंधान शालाओं तथा किसी भी सार्वजनिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं अन्य सभी प्रकार के कार्यों में हिन्दी तथा/अथवा अन्य भारतीय भाषाओं को राजभाषा और शिक्षण प्रशिक्षण की भाषा के रूप में स्थापना, प्रतिष्ठा और प्रसार वृद्धि के लिए वैधानिक उपायों द्वारा प्रयत्नशील रहना तथा सब प्रकार की सहायक गतिविधियों का संचालन करना।

प्रकाशित पत्रिका : राजभाषा चेतना (त्रैमासिक), संपादक : प्रो.जयदेव आर्य।

पता : राजभाषा संघर्ष समिति (पंजी.), ए-४/१५३, सैक्टर-४, रोहिणी, दिल्ली-११००८५

मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल (म.प्र.)
स्थापना : १ जुलाई, १९५४
       मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति यद्यपि पांच दशक पुरानी संस्था है, लेकिन उसके अस्तित्व का बीजारोपण सन् १९१८ ई. में इन्दौर में सम्पन्न हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साथ ही हो गया था। इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए गांधी जी ने स्वाधीनता के लिए राष्ट्रभाषा का औचित्य प्रतिपादित किया था। आपने कहा था- 'यदि देश के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करनी है तो हमें एक राष्ट्रभाषा भी स्वीकार करनी होगी। यह भाषा केवल हिन्दी ही हो सकती है। इसके द्वारा हम देश की चारों दिशाओं को एकता के सूत्र में बांध सकेंगे। राष्ट्रपिता की इस सर्वकालिक अपेक्षा की पूर्ति के लिए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के नागपुर अधिवेशन (सन् १९३६) में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना हुई। प्रस्ताव गांधीजी का ही था। राजेन्द्र बाबू तब समिति के संस्थापक अध्यक्ष बने थे। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना है, इस ध्येय को पाने के लिए देश स्तर पर एक आंदोलन के रूप में अभियान प्रारम्भ हुआ। इसकी चुनौतीपूर्ण ध्वनि मालवा अंचल में आदरणीय श्री बैजनाथ प्रसाद दुबे के माध्यम से पहुंची और हिन्दी के प्रचार-प्रसार और प्रयोग को सुनियोजित रूप से आगे बढ़ाने हेतु आदरणीय दुबेजी ने एक जुलाई १९५४ को महू में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का कार्यालय प्रारम्भ किया। तत्पश्चात महाराजकुमार, डॉ.रघुवीरसिंह, सीतामऊ प्रथम अध्यक्ष बने।
       जब एक नवम्बर १९५६ को नया मध्य प्रदेश बना और पं. रविशंकर शुक्ल प्रथम मुख्यमंत्री बने, तो राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के लिए तेजी से अनुकूल स्थितियां बनती चली गईं। कालांतर में म.प्र. के जो राज्यपाल और मुख्यमंत्री आए, उन सबसे म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को अपेक्षानुसार स्नेह और सहयोग मिला। शनै: शनै: हिन्दी प्रेमी लोग भी समिति की गतिविधियों से जिला और राज्य स्तर पर जुड़ते चले गए। आज जिस आत्मनिर्भर और सम्मानजनक स्थिति में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति और उसका सहयोगी हिन्दी भवन न्यास खड़ा है, वह राष्ट्रभाषा के हित साधन हेतु उठे उदार हाथों, हिन्दी प्रेमियों और साहित्यकारों के अथक प्रयासों का ही प्रतिफल है।
उद्धेश्य : 
        राष्ट्रभाषा हिन्दी का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार तथा बैंकों, शासकीय/अशासकीय कार्यालयों, प्रतिष्ठानों और शैक्षणिक संस्थाओं में हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनकारी और सहयोगी गतिविधियों का संचालन ही म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का प्रमुख दायित्व है। समिति ने इस काम में छात्र वर्ग को सहभागी बनाने की पहल भी प्रतिभा प्रोत्साहन प्रतियोगिताओं के रूप में की गई है।
       हिन्दी के अधिक से अधिक प्रयोग के संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए समिति हर साल सितम्बर माह में हिन्दी मास, विशेषकर हिन्दी दिवस के अवसर पर पूरा लाभ उठाकर ऐसे समन्वित प्रयास करती है, जिसकी मदद से हिन्दी मास के दौरान प्रतिष्ठानों, संस्थाओं तथा मीडिया में हिन्दी की गूंज रहती है। जो व्यक्ति हिन्दी और हिन्दी साहित्य के संवर्द्धन के लिए समर्पित भाव से काम कर रहे हैं उन्हें सम्मानित करने का दायित्व समिति ने स्वत:स्फूर्त भावना से स्वीकार किया है। इस प्रयोजन के लिए पं.रविशंकर शुक्ल हिन्दी भवन न्यास के सहयोग से समिति द्वारा अभिनव कार्यक्रम संचालित हैं। अहिन्दी भाषी लेखकों की हिन्दी कृतियों को पुरस्कृत करने के पीछे भारतीय भाषाओं के बीच सद्भाव का सेतु ही उद्देश्य है।
       समिति द्वारा व्याख्यानमालाओं का आयोजन करना, सात संकल्पों वाला 'हम भारतीय अभियान', हिन्दी भवन न्यास के सहयोग से अवसरों के अनुकूल सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित करना भी समिति के विशिष्ट कार्यक्रम हैं।
       समिति की एक विशिष्ट उपलब्धि हिन्दी प्रदेश के पहले साहित्यकार-निवास का निर्माण किया जाना है। किसी भी स्वैच्छिक साहित्यिक संस्था द्वारा अपने स्त्रोतों से इस तरह का निर्माण-कार्य देश में पहली बार सम्पन्न हुआ है। अब भोपाल आकर साहित्यकार प्रतीकात्मक राशि देकर यहां रहकर अपना अध्ययन और लेखन कर सकेंगे।
प्रकाशित पत्रिका : अक्षरा(त्रैमासिक), संपादक : श्री विजय कुमार देव।
पता : मंत्री/संचालक, म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल-४६२००२(म.प्र.)

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा (महाराष्ट्र)
स्थापना : सन् १९३६ ई.
       राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के संस्थापकों में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, डॉ.राजेन्द्रप्रसाद, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, पं.जवाहरलाल नेहरू, श्री सुभाषचन्द्र बोस, आचार्य नरेन्द्र देव, आचार्य काका कालेलकर, सेठ जमनालाल बजाज, बाबा राघवदास, श्री शंकरदेव, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, श्री हरिहर शर्मा, पं. वियोगी हरी, श्री नाथसिंह, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, बृजलाल बियाणी एवं श्री नर्मदाप्रसाद सिंह प्रमुख थे।
संस्था के प्रमुख उद्धेश्य : 
       देश एवं विदेश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने हेतु परीक्षाओं के माध्यम से तथा अन्य योजनाओं से भारत के जन-जन तक राष्ट्रभाषा हिन्दी का सन्देश पहुँचाना। उन्हें भाषा सिखाना। प्रचार एवं संपर्क हेतु ''राष्ट्रभाषा`` मासिक पत्रिका का नियमित प्रकाशन। वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हेतु कटिबद्ध। मुफ्त पुस्तकालय द्वारा जनसेवा। राष्ट्रभाषा महाविद्यालय द्वारा पूर्वांचल, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल, मेघालय, नागालैण्ड के छात्रों के लिए हिन्दी माध्यम के वर्ग चलाना। किशोर भारतीय नई पीढ़ी को राष्ट्रभाषा का अच्छा ज्ञान प्रदान कराने हेतु हिन्दी माध्यम से शिक्षा देना।
संस्था द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त विववरण :
       देश के विभिन्न प्रदेशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका, पूर्व अफ्रीका, श्रीलंका, बर्मा, मारीशस, फिजी, थाईलैण्ड, सूरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिनाड, इंग्लेण्ड, अमेरिका आदि देशा में विभिन्न परीक्षाओं का आयोजन किया गया। प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर एवं तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन का नई दिल्ली में आयोजन किया गया। संस्था का एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें २० हजार से अधिक विविध विषयों की पुस्तकें उपलब्ध हैं। संस्था की स्वयं की प्रेस है। संस्था द्वारा 'हम चालीस` अभियान का संचालन एवं राष्ट्रभाषा पत्रिका का प्रकाशन १९४२ से अब तक हो रहा है। इसके अतिरिक्त संस्था ने राष्ट्रभाषा कोष एवं कई ग्रंथमालाओं का प्रकाशन किया है।
प्रकाशित पत्रिका : राष्ट्रभाषा (मासिक), प्रधान संपादक : प्रा.अनन्तराम त्रिपाठी।
पता : राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ४४२००३(महाराष्ट्र)

कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बेंगलूर-१८ (कर्नाटक)
स्थापना : सन् १९५३ ई.
संस्था के प्रमुख उद्धेश्य : हिन्दी प्रचार के साथ भारत की एकता बनाये रखना समिति का प्रधान लक्ष्य है। प्रांतीय भाषा के सहयोग से हिन्दी का विकास करना उसका प्रमुख कार्यक्रम है। जनता में हिन्दी प्रचार करना और उसके लिए उचित सामग्री जुटाना समिति के निरंतर चिन्तन का विषय है।
कार्य : संस्था १९५३ से निरंतर हिन्दी के प्रचार में संलग्न है। संस्था द्वारा हिन्दी प्रचारवाणी नामक पत्रिका का नियमित प्रकाशन किया जा रहा है। इसके अलावा कर्नाटक साहित्य से संबंधित लेख, परीक्षार्थियों के उपयोगी लेख, पुस्तक समीक्षा, प्रश्नोत्तर, सभा समारोह आदि का आयोजन किया जाता है। पत्रिका के लिए करीब पाँच हजार प्रचारकों ने आजीवन प्रचारक चंदा जुटाकर इसके प्रकाशन को नियमित करने में सहयोग दिया है। संस्था द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं के लिए पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने के लिए साहित्य विभाग कार्यरत है। भारत सरकार से विभिन्न परीक्षाओं के लिए स्वीकृत पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने के लिए विद्वानों को आमंत्रित किया जाता है, उनसे परीक्षा स्तर को ध्यान में रखकर पुस्तकों को तैयार किया जाता है। अब तक लगभग ११२ पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। पाठ्यपुस्तकों के अलावा विविध विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर पुस्तकों का निर्माण किया जाता है। परस्पर आदान-प्रदान हेतु कन्नड़ के वरिष्ठ विद्वानों की कृतियों को अनुवाद कराने एवं प्रकाशित कराने का कार्य भी चलता रहता है।
प्रकाशित पत्रिका : हिन्दी प्रचारवाणी,(मासिक), प्रधान संपादक : श्रीमती बी.एस.शांताबाई।
पता : कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, १७८, ४ मैन रोड, चामराजपेट, बेंगलूर-१८ (कर्नाटक)

केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद्, नई दिल्ली
स्थापना : ३ मई १९६० ई.
उद्धेश्य : केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों और सम्बद्ध कार्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना, हिन्दी को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करना तथा उस दिशा में किए जाने वाले कार्यों में सहयोग देना। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
कार्य : केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद की स्थापना ३ मई, १९६० को नई दिल्ली में हुई थी। इसके संस्थापक दूर-द्रष्टा स्व. श्री हरि बाबू कंसल थे। केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक तथा अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों, जीवन बीमा, खादी ग्रामोद्योग तथा केन्द्रीय सरकार के अन्तर्गत निगमों और अन्य स्वायत्त संस्थाओं के कर्मचारी/अधिकारी इसके सदस्य बन सकते हैं। दिल्ली के अतिरिक्त देश के अनेक नगरों में सैंकड़ों शाखाएं स्थापित हो चुकी हैं, जिनमें हजारों सदस्य हैं। परिषद ने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और कार्यालयों के कर्मचारियों की सुविधा के लिए अनेक प्रकाशन निकाले हैं जिनकी सहायता से कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बहुत आसान हो गया है। वैज्ञानिक और तकनीकी कार्य के लिए भी काफी साहित्य प्रकाशित कराया है। विभिन्न विभागों में प्रयुक्त होने वाली शब्दावलियों के दीवारों पर टांगे जाने वाले चार्ट और पुस्तिकाएं भी प्रकाशित की गई हैं।
       केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों में हिन्दी प्रयोग के प्रति रुचि उत्पन्न करने की और उनकी प्रवीणता बढ़ाने की दृष्टि से हर वर्ष अखिल-भारतीय स्तर पर हिन्दी में टाइपिंग, आशुलिपि, टिप्पण तथा प्रारूप लेखन, व्यवहार, निबन्ध तथा वाक् प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती रही हैं। और इनमें सफलता प्राप्त करने वालों को विविध पदक, पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र आदि दिए जाते हैं। वैज्ञानिक तथा साहित्यिक गोष्ठियों, हिन्दी व्यवहार प्रदर्शिनियों, वैज्ञानिक तथा तकनीकी भाषण-माला आदि के आयोजन भी कराए जाते हैं। वैज्ञानिक तथा तकनीकी निबन्ध प्रतियोगिता द्वारा वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने का प्रयास जारी है।
भारत सरकार के विभिन्न कार्यालयों में राजभाषा नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए हर समय सहयोग तथा सुझाव तो परिषद द्वारा दिए ही जाते हैं, साथ ही अधिकारियों और कर्मचारियों की अलग-अलग अथवा सम्मिलित गोष्ठियां आयोजित करके उनकी कठिनाइयों का व्यावहारिक हल निकालने का प्रयास भी किया जाता है। हिन्दी परिषद के सुझाव ठोस और सहस होते हैं इसीलिए उसे सभी स्तर के कार्यालयों में सभी भाषा-भाषी अधिकारियों और कर्मचारियों का सहयोग मिल रहा है।
अन्य कार्य : तकनीकी और वैज्ञानिक कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने हेतु प्रयास, भर्ती और विभागीय पदोन्नति की परीक्षाओं का माध्यम हिन्दी में कराने हेतु प्रयास, विभिन्न तकनीकी परीक्षाओं का माध्यम हिन्दी कराने हेतु प्रयास।
केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद की हिन्दी को ही सरकारी कामकाज की मानक हिन्दी माना जाता है।
प्रकाशित पत्रिका : हिन्दी परिचय(द्विमासिक), संपादक : श्री मोहन डबराल।
पता : केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद्, एक्सवाई-६८, सरोजनी नगर, नई दिल्ली-११००२३

मुंबई हिन्दी विद्यापीठ, मुंबई(महाराष्ट्र)
स्थापना : १२ अक्टूबर सन् १९३८ ई.
       बम्बई नगर में राजबहादुर सिंह ठाकुर, डॉ. मोती चन्द्र, श्री भानु कुमार आदि के सहयोग से 'बम्बई हिन्दी विद्यापीठ' की स्थापना हुई। विद्यापीठ का अपना एक मुद्रणालय और विशाल भवन है। प्रथमा, मध्यमा, उत्तमा, भाषारत्न और साहित्य-सुधाकर विद्यापीठ की परीक्षाएँ निर्धारित हैं, जिसकी मान्यता मैट्रिक, इण्टर और बी.ए. के समकक्ष हैं। इसका कार्यक्षेत्र अखिल भारतीय है। प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों में संस्था की ओर से प्रचार-शिविरों एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। विद्यापीठ का मासिक मुख्यपत्र 'भारती' नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा है।
प्रकाशित पत्रिका : भारती (मासिक), संपादक : श्री दत्तात्रय भि. गुर्जर।
पता : मुम्बई हिन्दी-विद्यापीठ, उद्योग मन्दिर, धर्मवीर संभाजीराजे मार्ग, माहिम, मुम्बई-१६ (महाराष्ट्र)

केरल हिन्दी प्रचार सभा, तिरुवन्तपुरम
स्थापना : सन् १९३९ ई.
       इस सभा की स्थापना के. वासुदेवन पिल्ले ने की। केरल राज्य में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने के लिए हिन्दी की छोटी-बड़ी सभी परीक्षाओं को संचालित करना, हिन्दी की पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करना तथा हिन्दी नाटकों को अभिनीत करना इस सभा के मुख्य उद्देश्य रहे हैं। सन् १९४८ ई. से 'केरल हिन्दी प्रचार सभा' स्वतंत्र रूप से अपनी परीक्षाएँ हिन्दी प्रथमा, हिन्दी प्रवेश, हिन्दी भूषण और साहित्याचार्य संचालित करती है। हिन्दी मलयालम और तमिल भाषाओं में सामंजस्य स्थापना करने के प्रयोजन से 'राष्ट्रवाणी' नाम की एक त्रिभाषा साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया गया। इसके अतिरिक्त 'केरल ज्योति' नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है। सभा भवन में एक केन्द्रीय हिन्दी महाविद्यालय कार्य कर रहा है। सभा का प्रकाशन विभाग भी सुचारू रूप से चल रहा है।
प्रकाशित पत्रिका : केरल ज्योति (मासिक), संपादक : डॉ.एस.राधाकृष्ण पिल्लै।
पता : केरल हिन्दी प्रचार सभा, तिरुवनन्तपुरम-६९५०१४

मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद्, बेगलौर
स्थापना : सन् १९४२ ई.
उद्देश्य : मैसूर राज्य में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी के प्रचार के उद्देश्य से इस परिषद की स्थापना हुई। परिषद की तीन परीक्षाएँ प्रवेश, उत्तमा, रतन क्रमश: मैट्रिक, आई.ए. और बी.ए. के समकक्ष हैं, जिन्हें मैसूर राज्य सरकार तथा भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। परिषद का अपना केन्द्रीय पुस्तकालय है जिसमें हिन्दी की लगभग पाँच हजार से भी अधिक पुस्तकें हैं। निजी संविधान के द्वारा परिषद् की परीक्षाएँ, प्रचार के कार्य एवं प्रकाशन आदि संचालित किए जाते हैं।
प्रकाशित पत्रिका : मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद् पत्रिका (मासिक), प्रधान संपादक : डॉ.बि.रामसंजीवरया
पता : मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद, ५८, वेस्ट आफ कार्ड रोड, राजाजी नगर, बैंगलूर-१०(कर्नाटक)

मणिपुर हिन्दी परिषद्, इम्फाल
स्थापना : सन् १९५३ ई.
       मणिपुर में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार सन् १९४४ से ही प्रारंभ हो गया था किन्तु सन् १९५३ ई. में मणिपुर के कुछ हिन्दी प्रेमी उत्साही व्यक्तियों ने 'मणिपुर हिन्दी परिषद्' की इम्फाल-नगर में स्थापना की। अपने विधान और नियमानुसार परिषद् द्वारा हिन्दी को सर्वप्रिय बनाने के लिए हिन्दी प्रारंभिक, हिन्दी प्रवेश, हिन्दी परिचय, हिन्दी प्रबोध, हिन्दी विशारद एवं हिन्दी रत्न, इन छह परीक्षाओं का संचालन हुआ, जिन्हें केन्द्र एवं राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त है। परिषद् के पुस्तकालय में डेढ़ हजार से अधिक पुस्तकें हैं। समय-समय पर परिषद् साहित्यिक समारोहों का भी आयोजन करती है, जिसमें पदवी-दान, पुरस्कार वितरण और प्रतिष्ठादान जैसे कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
प्रकाशित पत्रिका : महीप पत्रिका (त्रैमासिक), संपादक : श्री देवराज।
पता : मणिपुर हिन्दी परिषद्, इम्फाल(मणिपुर)

अखिल भारतीय भाषा-साहित्य-सम्मेलन, पटनास्थापना : सन् १९६३ ई.।
       १९६३ में अमरावती में एक सर्वभाषा समागम सभा हुई थी, जिसमें प्रो. हुमायंु कबीर, राजा महेन्द्रप्रताप, पी.वी. नरसिंहराव, डॉ. सरोजिनी महिषी, डॉ. रमण एलेडम, सी.एस. कानवी आदि विद्वान एकत्रित हुए थे और इस समागम में भारतीय भाषाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता बलवती करने पर विचार हुआ था। इसमें मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि प्रख्यात लेखक व कवि श्री सतीश चतुर्वेदी भी थे। इसी से प्रेरणा लेकर श्री सतीश चतुर्वेदी ने १९६६ में अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन की स्थापना की, जिसे श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का आशीर्वाद प्राप्त था और उन्हीं की प्रेरणा से संस्था का यह नामकरण भी हुआ।
       पंडित कुंजीलाल दुबे की अध्यक्षता में संपन्न प्रथम समागम में देश के विभिन्न प्रांतों के साहित्यकारों ने इसमें भाग लिया। इसके बाद सम्मेलन प्रौढ़ होता गया। देश के विख्यात साहित्यवेत्ता, लेखक, कवि और कहानीकार इससे जुड़ते गये। भारत के लगभग सभी राज्यों में यह संस्था कार्यरत है, जिसमें बिहार सबसे आगे है। अभी तक इसके राष्ट्रीय अधिवेशन भोपाल, दिल्ली, अमरावती, बेंगलोर, हैदराबाद, कोलकाता, पटना, केरल, इंदौर आदि में सम्पन्न हो चुके हैं।
       देश के सर्वभाषा साहित्य सर्जकों की यह संस्था संपूर्ण देश में कार्यरत है और लगभग तीन हजार साहित्यकार इसके सक्रिय सदस्य हैं। देश के लगभग समस्त मूर्धन्य साहित्यकारों को भी इस संस्था ने भारत भाषा भूषण, साहित्यश्री एवं समन्वयश्री के अलंकरणों से विभूषित किया है।
प्रकाशित पत्रिका : भाषा-भारती-संवाद, प्रधान संपादक : श्री नृपेन्द्र नाथ गुप्त
पता : अखिल भारतीय भाषा-साहित्य-सम्मेलन, श्री उदित आयतन, शेखपुरा, पटना-८०००१४(बिहार)

अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी समिति, नकोदर (पंजाब)
उद्धेश्य : अपने आपमें एक अनूठा प्रयास। मौलिक चिंतन। एक आन्दोलन।
       गांधी, शास्त्री जयन्ती- २ अक्तूबर, १९९९ को 'स्वागत पत्रिका' के नाम से लोकसभा सदस्यों को अभिनन्दन रूप में एवं अन्य नेताओं को प्रसाद रूप में 'अस्मिता का शंखनाद' सादर समर्पित करते हुए इस पत्रिका की संपादिका प्रो. प्रितपाल 'बल' ने अपने प्राक्कथन में लेख किया : हटाओ और मिटाओ में आकाश-पाताल का अन्तर है। इस अन्तर को न समझ पाने से बहुत से लोग अंग्रेजी हटाओ का नाम सुनते ही आपे से बाहर हो जाते हैं और इस समिति के सदस्यों को पागल की पदवी से सुशोभित करने लगते हैं। अपना पागलपन हमें स्वीकार है। पर यह पागलपन बुद्धि का दिवालियापन न होकर ठीक वैसा है, जिसके बारे में सूफी फकीर ने कहा है- 'पा गल असली, पागल हो जा।'
       हम पागल हैं राष्ट्रीयता के लिए, देश की अस्मिता के लिए, देश के नन्हें-मुन्नों की बुद्धि से हो रहे बलात्कार की रोकथाम के लिए, भारत के मस्तिष्क को विदेशी सड़ांघ से बचाने के लिए, देश के स्वतंत्र चिन्तन को न उभरने देने वाले आवरण को हटाने के लिए। हम अंग्रेजी भाषा के या उसे पढ़ाने के विरोधी नहीं हैं। अंग्रेजी की अनिवार्यता के तथा अंग्रेजी माध्यम की अनिवार्यता के और अंग्रेजी के सार्वजनिक प्रयोग के विरोधी हैं। हम अंग्रेजी को हटाना चाहते हैं, मिटाना नहीं चाहते। उस स्थान से हटाना चाहते हैं जहाँ रहकर वह हानि पहुँचा रही है। जहाँ हित कर सकती है वहां आदर पूर्वक रखना चाहते हैं। आज हिन्दुस्तान में उसने जो जगह हथिया रखी है, उसके कारण हिन्दुस्तानी बच्चे के दिमाग को लकवा मार रहा है, हिन्दुस्तानी युवकों का मौलिक चिन्तन ध्वस्त हो रहा है।
       हमसे कहा जाता है कि माँ बाप को क्यों नहीं समझाते कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में न पढ़ावें। इस बारे में हम इतना ही कहेंगे कि आज अंग्रेजी के साथ इज्जत जुड़ी है, रुतबा जुड़ा है और नौकरी जुड़ी है। अत: कौन माँ-बाप अपनी संतान को इनसे वंचित रखना चाहेगा ? हमारी चोट सरकार की उस दुर्नीति पर है जिसके कारण देशी भाषाओं को अपनाने वाला न प्रतिष्ठा का पात्र बन पा रहा है और न भी माने जाने वाली आजीविका का।
       हमसे यह भी कहा जाता है कि जब आप अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के विरोधी हैं तो आर्यसमाज, सनातनधर्म, जैनियों, सिक्खों आदि की ओर से बड़े पैमाने पर खोले जा रहे अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूलों की निन्दा क्यों नहीं करते ? इनके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाते ?
       इस संबंध में हमारा मानना है कि ये सभी स्कूल सरकारी दुर्नीति की उपज हैं। ये संस्थाएँ स्वेच्छा से इन स्कूलों को नहीं खोल रहीं। सरकार की दुर्नीति से उन ईसाई मिशनरियों के स्कूलों को बढ़ावा मिल रहा था जो अंग्रेजी तथा अंग्रेजियत दोनों के पक्ष में हैं। ये स्कूल उन ईसाई स्कूलों के दुष्परिणाम को कम करने के लिए स्थापित किये जा रहे हैं। सरकारी नीति बदलते ही इन सबका माध्यम लोकभाषा हो जायेगा, ऐसा हमें विश्वास है। हम सरकार के नवोदय स्कूलों के अवश्य विरुद्ध हैं क्योंकि ये अंग्रेजी के प्रति रुझान बढ़ा रहे हैं। हम देहरादूनी शैली के अंग्रेजी स्कूलों के घोर विरोधी हैं, क्योंकि ये स्कूल अंग्रेजी और अंग्रेजियत के प्रचारक हैं।
हमारे ईसाई भाई अंग्रेजी के साथ अपना रिश्ता जोड़कर अपने आपको गैरहिन्दुस्तानी प्रमाणित कर रहे हैं। ईसा मसीह की भाषा अंग्रेजी नहीं थी। उसने अपना उपदेश अरमैक भाषा में दिया था। आज वह भाषा मर चुकी है पर वह हिन्दुस्तानी भाषाओं के ज्यादा नजदीक थी।
       हम अंग्रेजी की पढ़ाई बिल्कुल बंद करना नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि अंग्रेजी के साथ रूसी, चीनी, अरबी, फारसी, जर्मदा आदि विदेशी भाषाओं का विकल्प रहे। विद्यार्थी इच्छानुसार विदेशी भाषा चुन सके। विदेशी भाषा की शिक्षा वैज्ञानिक ढंग से तथा यहाँ की लोकभाषाओं के माध्यम से दी जाये। उसमें भाषा ज्ञान अर्थात् समझने समझाने की शक्ति पर बल हो, साहित्य पर नहीं। उसे परीक्षा का माध्यम न बनाया जाये। यहाँ की नौकरी के लिए उसका ज्ञान अपेक्षित न हो।
       हम विदेशी भाषाओं को राष्ट्रभवन की खिड़कियाँ मानते हैं। कोईर् भी समझदार गृहस्थ अपने भवन में एक ही खिड़की नहीं बनाता। किन्तु हमारे देश के नेताओं ने इस राष्ट्रभवन में अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य खिड़की को बनाया ही नहीं। उन्होंने तो राष्ट्रभाषा की ड्यौढ़ी तथा लोकभाषाओं के दरवाजों को भी बन्द करके अकेली अंग्रेजी की खिड़की के द्वारा ही यहाँ के नागरिकों को गतागत कराने में गौरव समझा है।
       आईये इस राष्ट्रीय अभियान में हमारा साथ दीजिए। अपने अपने क्षेत्रों में इस प्रकार के संगठन बनाकर अपने ढंग से अंग्रेजी के दुर्ग को ढाने का प्रयत्न कीजिए।
उन ढोंगी नेताओं को नकारिये जो संसद अथवा विधान सभा में अथवा सार्वजनिक मंच पर अंग्रेजी में बोलने को शान समझते हैं।
प्रकाशित पत्रिका : 'स्वागत पत्रिका' अस्मिता का शंखनाद, संपादिका : प्रो. प्रितपाल 'बल'
पता : अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी समिति, नकोदर-१४४०४० (पंजाब)

राष्ट्रीय हिन्दीसेवी महासंघ, इन्दौर (म.प्र.)
स्थापना : सन् १९९७ ई.
उद्देश्य :
        संकल्प -देशवासियों में भावात्मक एकता, परस्पर सद्भाव व भाषाई सौहार्द, हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं को समुचित सम्मान व प्रतिष्ठा, हिन्दीसेवियों के हितों का संरक्षण, एकजुटता, समन्वित प्रयास, सार्थक पहल।
       लक्ष्य एवं कार्य : हिन्दी के व्यापक प्रसार के निमित्त राष्ट्रव्यापी हिन्दी के पक्षधरों को एकजुट करने, हिन्दीसेवी संस्थाओं में समन्वय बनाने और मिलकर अभियान चलाने तथा हिन्दी सेवियों के हितों के संरक्षण के लिए उपाय करने तथा बैठकें, गोष्ठियाँ, विविध समारोह और सम्मेलन आयोजित करना, मुखपत्र/पत्रिका तथा अन्य सम्बद्ध प्रकाशन करना और सभी प्रकार से पहल करना।
प्रकाशित पत्रिका : वाग्धारा (मासिक), संपादक : राज केसरवानी।
पता : महासचिव, राष्ट्रीय हिन्दीसेवी महासंघ, ३, ४-सेन्ट्रल एक्साइज कॉलोनी, रेसीडेंसी एरिया, इन्दौर-४५२००१ (म.प्र.)

हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
स्थापना : १ मई १९१० ई.
       हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक आयोजन करने का निश्चय काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की एक बैठक में, १ मई, सन् १९१० को किया गया। इसी के निश्चयानुसार १० अक्टूबर, १९१० को वाराणसी में ही पण्डित मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में पहला सम्मेलन हुआ। दूसरा सम्मेलन प्रयाग में करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ और सन् १९११ में दूसरा सम्मेलन इलाहाबाद में पण्डित गोविन्दनारायण मिश्र के सभापतित्व में सम्पन्न हुआ। दूसरे सम्मेलन के लिए प्रयाग में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' नाम की जो समिति बनायी गयी, वही एक संस्था के रूप में, प्रयाग में आपके सम्मुख विराजमान है, जो स्वतन्त्रता-आन्दोलन के समान ही भाषा-आन्दोलन का साक्षी और राष्ट्रीय गर्व-गौरव का प्रतीक है। टण्डन जी सम्मेलन के जन्म से ही मन्त्री रहे और इसके उत्थान के लिए जिये, इसीलिए उन्हें 'सम्मेलन के प्राण' के नाम से अभिहित किया जाता है।
सम्मेलन का उद्देश्य :
       हिन्दी साहित्य सम्मेलन का उद्देश्य है-देशव्यापी व्यवहारों और कार्यों में सहजता लाने के लिए राष्ट्रलिपि देवनागरी और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करना। हिन्दीभाषी प्रदेशों में सरकारी तन्त्र, सरकारी, अर्द्धसरकारी, गैर सरकारी निगम, प्रतिष्ठान, कारखानों, पाठशालाओं, विश्वविद्यालयों, नगर-निगमों, व्यापार और न्यायालयों तथा अन्य संस्थाओं, समाजो, समूहों में देवनागरी लिपि और हिन्दी का प्रयोग कराने का प्रयत्न करना। हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि के लिए मानविकी, समाजशास्त्र, वाणिज्य, विधि तथा विज्ञान और तकनीकी विषयों की पुस्तकें लिखवाना और प्रकाशित करना। हिन्दी की हस्तलिखित और प्राचीन सामग्री तथा हिन्दी भाषा और साहित्य के निर्माताओं के स्मृति-चिन्हों की खोज करना और उनका तथा प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह करना। अहिन्दीभाषी प्रदेशों में वहॉं की प्रदेश सरकारों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों आदि से सम्पर्क करके उन्हें देवनागरी लिपि में हिन्दी के प्रयोग के लिए तथा सम्पर्क भाषा के रूप में भी हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रेरित करना। हिन्दीतर भाषा में उपलब्ध साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करवाने और प्रकाशन करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना और ग्रन्थकारों, लेखकों, कवियों, पत्र-सम्पादकों, प्रचारकों को पारितोषिक, प्रशंसापत्र, पदक, उपाधि से सम्मानित करना।
सम्मेलन से सम्बद्ध संस्थाऍं
       सम्मेलनरूपी इस विशाल वटवृक्ष की अनेक शाखाऍं, प्रशाखाऍं पूरे देश में हिन्दी प्रचार में लगी हुई हैं। इनमें से कुछ संस्थाऍं सम्मेलन से सीधे सम्बद्ध हैं और कुछ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के माध्यम से जुड़ी हैं। उत्तरप्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना, मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गॉंव, बम्बई प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बम्बई, दिल्ली प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली, विन्ध्य प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, रीवा, ग्रामोत्थान विद्यापीठ, सॅंगरिया, राजस्थान, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद्, बैंगलूर, मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर, भारतेन्दु समिति कोटा, राजस्थान तथा साहित्य सदन, अबोहर भी सम्मेलन से सीधे सम्बद्ध हैं।
प्रकाशित पत्रिका : राष्ट्रभाषा सन्देश(मासिक), प्रधान संपादक : श्री विभूति मिश्र।
पता : हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, १२, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद-३(उ.प्र.)

भारत-एशियाई साहित्य अकादमी, दिल्ली
उद्धेश्य :
       भारतीय साहित्य (विशेष रूप से हिन्दी साहित्य) तथा अन्य एशियाई देशों (विशेषतया पड़ौसी देशों) के साहित्य को उत्प्रेरित, निष्पादित तथा प्रोत्साहित करना। भारत तथा अन्य एशियाई देशों के सृजनात्मक लेखकों (विशेषत: कवियों) के लिए भारतीय तथा एशियाई साहित्यकारों की कृतियों की समीक्षा, परिचर्चा एवं संप्रेषण हेतु एक मंच तैयार करना। भारत तथा अन्य एशियाई देशों के कवियों तथा सृजनात्मक लेखकों में पारस्परिक मैत्री, सद्भावना, सहयोग तथा संयुक्त उद्यम को प्रोत्साहित करना।
प्रकाशित पत्रिका : भारत-एशियाई साहित्य (अर्द्ध वार्षिक), संपादक : श्री अशोक खन्ना
पता : भारत-एशियाई साहित्य अकादमी (पं.न्यास), ई-१०७०, सरस्वती विहार, दिल्ली-११००३४(भारत)

राष्ट्रीय हिन्दी परिषद्, मेरठ
स्थापना : १७ जून १९८५ ई.
       शासन का कार्य चलाने के लिये जिस भाषा की आवश्यकता होती है वह राजभाषा कहलाती है। मुगलकाल में शासन की राजकाज की भाषा उर्दू फारसी थी। अंग्रेजों के शासन में अंग्रेजी थी। भारत के स्वाधीन होने पर भारतीय संविधान सभा ने १३ सितम्बर १९४९ को हिन्दी को राष्ट्रभाषा के लिये स्वीकृत किया तथा शासन का सम्पूर्ण कार्य हिन्दी में चलाने का निर्णय लिया। किन्तु स्वाधीनता के ५५ वर्ष के बाद भी हिन्दी राजभाषा के रूप में स्थापित नहीं हो सकी है तथा उसके स्थान पर अंग्रेजी में ही सम्पूर्ण राजकाज हो रहा है। उसी के कारण देश में चतुर्दिक अंग्रेजी का बोलबाला हो रहा है।
       सरकारी स्तर पर हिन्दी के प्रति उदासीनता तथा उपेक्षा-भाव देखकर मेरठ के प्रबुद्ध नागरिकों के सहयोग से सोमवार १७ जून १९८५ को राष्ट्रीय हिन्दी परिषद् की स्थापना की गई। संस्था का संविधान बनते ही देश के कोने-कोने से प्रमुख हिन्दी विद्वान, साहित्यकार तथा पत्रकार इसके सदस्य बन बए तथा सम्पूर्ण भारत में संस्था के बुलेटिन द्वारा इसका प्रचार-प्रसार आरम्भ हो गया।
उद्देश्य : संस्था के निम्नलिखित तीन उद्देश्य हैं-
१. हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की भाषा के रूप में विकसित करना तथा उसे देश के बहुमुखी विकास का साधन बनाने का प्रयास करना।
२. हिन्दी के विकास द्वारा भारतीय संस्कृति की रक्षा करना तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को सुदृढ़ बनाना।
३. विदेशों में भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार को बढ़ाना, जिससे कि हिन्दी अंतरर्राष्ट्रीय सम्पर्क-भाषा के रूप में विकसित हो सके और संयुक्ट राष्ट्र संघ की भाषा बन सके।
संस्था के कार्यक्रम :
निबन्ध प्रतियोगिता : राष्ट्रीय हिन्दी परिषद् अखिल भारतीय स्तर पर तीन निबन्ध प्रतियोगिताऍं आयोजित कर चुकी है, जिनक विषय निम्न प्रकार रहे हैं-
१. हिन्दी से ही राष्ट्रीय एकता सम्भव है।
२. भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण धारा राष्ट्रभाषा हिन्दी से ही सुरक्षित रह सकती है।
३. हिन्दी का सभी भारतीय भाषाओं से साम्य भाव है।
विभिन्न प्रदेशों के विश्वविद्यालयों के स्तर पर आयोजित इन तीनों प्रतियोगिताओं के प्रथम १० पुरस्कृत निबन्धों का पुस्तकों के रूप में प्रकाशन किया गया है, जिनके नाम 'अंकुर', 'किसलय' तथा 'वल्लरी' हैं। संस्था द्वारा प्रकाशित ये तीनों पुस्तके सभी सदस्यों की सेवा में भेजी गई।
इसी श्रृंखला में परिषद् के ८०० सदस्यों के फोटो तथा परिचय सहित 'एकता' स्मारिका प्रकाशित की गई, जो अपनी उत्कृष्टता तथा अनुपम सामग्री के लिये सर्वत्र सराही गई। परिषद् का प्रतिमास बुलेटिन प्रकाशित करने की परम्परा है, जिसमें संस्था की प्रगति एवं कार्यक्रमों का पूर्ण सचित्र विवरण निहित होता है।
ग्रीष्मकालीन सम्मेलन : परिषद् ने जून १९८८ में पर्वतों की रानी मसूरी में दो दिवसीय ग्रीष्मकालीन हिन्दी सम्मेलन का अयोजन सनातन धर्म कन्या इन्टर कॉलिज, मसूरी के सभागर में किया गया, जिसमें विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में विचार-गोष्ठी तथा विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। पद्मश्री डॉ. रघुवीर शरण मित्र की अध्यक्षता में तथा विख्यात कवि श्री हरिओम पवार के संचालन में आयोजित इस कवि सम्मेलन में काका हाथरसी, डॉ. कुँवर बेचैन, सत्यदेव भोंपू, वेदप्रकाश सुमन, राजेन्द्र राजन, विजय प्रशांत, विष्णु सरस आदि प्रसिद्ध कवियों ने भाग लिया।
दिल्ली सम्मेलन :
दिसम्बर १९८८,८९ तथा ९० में दिल्ली में वार्षिक सम्मेलनों का आयोजन किया गया, जिनमें विचार संगोष्ठी तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इन सम्मेलनों में पद्मश्री यशपाल जैन आदि हिन्दी की अनेक विभूतियों ने भाग लिया तथा हिन्दी के मार्ग को प्रशस्त करने के सुझाव दिये।
यादगार सम्मेलन :
दि. २८, २९ अक्टूबर, १९९१ को नई दिल्ली के हिमाचल भवन में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्घाटन सुप्रसिद्ध चिंतक डॉ. कर्णसिंह ने किया तथा विचार संगोष्ठी में भगवत झा आजाद, बेकल उत्साही आदि विद्वानों ने भाग लिया।
दूसरे दिन उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने देश के शीर्षस्थ हिन्दी विद्वानों को शाल, अलंकरण तथा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इनमें १० हिन्दी विद्वान तमिलनाडू से थे।
मेरठ सम्मेलन :
परिषद् की ओर से मेरठ में प्रति वर्ष कई समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें हिन्दी दिवस, होली मिलन, नौचन्दी के अवसर पर कवि सम्मेलन जिसमें प्रसिद्ध शायर बशीर बदर ने कविता पाठ किया। प्रसिद्ध रूसी हिन्दी विद्वान डॉ. वारान्निकोव का अभिनन्दन, प्रतिष्ठान समारोह तथा शपथग्रहाण समारोह आदि आयोजित किए गए। परिषद् की ओर से प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस उत्साह से मनाया जाता है जिसमें विचार संगोष्ठी तथा कवि सम्मेलन का अयोजन किया जाता है।
प्रकाशित पत्रिका : एकता, प्रधान संपादक : डॉ.मित्रेश कुमार गुप्त।
पता : राष्ट्रीय हिन्दी परिषद, २, तिलक मार्ग, बेगम पुल, मेरठ-२५०००१(उ.प्र.)

हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश)
स्थापना : सन् १९५५ ई.
       हैदराबाद राज्य में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने वाली प्राचीनतम साहित्यिक-शैक्षणिक संस्था 'हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद' की स्थापना की गई। डॉ.बी.रामकृष्णराव जब प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए तब इस सभा को सरकारी सहायता मिलना आरम्भ हुआ। सभा का अपना एक विशाल भवन और प्रेस है। प्रतिकूल परिस्थितियों में सभा ने हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। सन् १९५६ से राज्यों के पुर्नसंगठन के कारण सभा में नवीन उत्साह का वातावरण बना। हैदराबाद राज्य का विलयन, महाराष्ट्र, आन्ध्र एवं मैसूर के नए राज्यों में हो गया और इनमें सभा की शाखाएँ प्रस्थापित हो गईं, लेकिन मुख्यालय हैदराबाद ही रहा। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से सभा का निकट संबंध रहा है। भारत सरकार ने इसे अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ के सदस्य के रूप में मान्यता दी है। सभा के द्वारा हिन्दी माध्यम से विद्यालय तो संचालित होते ही हैं, साथ ही साथ पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त मौलिक और अनुदित ग्रंथों का भी प्रकाशन होता है। शब्दकोषों का निर्माण तथा अन्य भाषाओं के इतिहासों का प्रकाशन भी किया जाता है।
प्रकाशित पत्रिका : विवरण पत्रिका(मासिक), संपादक : श्री धोण्डीराव जाधव
पता : सचिव, हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद, एल.एन.गुप्त मार्ग, नामपल्ली स्टेशन रोड, हैदराबाद-१(आंध्रप्रदेश)

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, चैन्नई
स्थापना : सन् १९१८ ई.
         भारत में महात्मा गांधी के हिन्दी प्रचार आंदोलन के परिणाम स्वरूप 'दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा' की स्थापना मद्रास नगर के गोखले हॉल में डॉ.सी.पी. रामास्वामी अरयर की अध्यक्षता में एनीबेसेन्ट ने की थी। महात्मा गांधी जो इस सभा के आजीवन अध्यक्ष रहे, उन्होंने देश की अखंडता और एकता के लिए हिन्दी की आवश्यकता पर बल देते हुए कांग्रेस द्वारा स्वीकृत चौदह रचनात्मक कार्यक्रमों में राष्ट्रभाषा हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार कार्य का भी उल्लेख है।
         महात्मा गांधी के बाद देशरत्न डॉ.राजेन्द्र प्रसाद इस संस्था के अध्यक्ष बनाए गए, जो स्वयं हिन्दी के कट्टर उपासक थे। 'हिन्दी समाचार' नाम की मासिक पत्रिका द्वारा सभा के उद्देश्य, प्रवृत्ति तथा अन्यान्य कार्यकलापों की विस्तृत सूचनाएँ प्रचारकों को मिलती रहती हैं। 'दक्षिण भारत' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका में दक्षिण भारतीय भाषाओं की रचनाओं के हिन्दी-अनुवाद और उच्चस्तर के मौलिक साहित्यिक लेख छपते हैं। हिन्दी अध्यापकों और प्रचारकों को तैयार करने के लिए सभा के शिक्षा विभाग के मार्गदर्शन में 'हिन्दी प्रचार विद्यालय' नामक प्रशिक्षण विद्यालय तथा प्रवीण विद्यालय संचालित होते हैं। प्रचार कार्य को सुसंगठित तथा शिक्षण को क्रमबद्ध और स्थायी बनाने के उद्धेश्य से सभा प्राथमिक, मध्यमा, राष्ट्रभाषा प्रवेशिका, विशारद, प्रवीण और हिन्दी प्रशिक्षण नामक परीक्षाओं का संचालन करती है। सभा की ओर से एक स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग खोला गया है, जिसमें अध्ययनार्थ प्रोफेसरों की नियुक्ति होती है। पुस्तकों का प्रकाशन सभा के साहित्य विभाग की ओर से किया जाता है। हिन्दी के माध्यम से तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम चारों भाषाएँ सीखने के लिए उपयोगी पुस्तकों एवं कोश आदि के प्रकाशन का विधान है।
प्रकाशित पत्रिका : हिन्दी प्रचार समाचार(मासिक), संपादक : जे.एस.रामदास।
पता : दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, टी. नगर, पोस्ट ऑफिस, मद्रास (चेन्नै)-६०००१७

महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे
स्थापना : सन् १९४५ ई.
           इस सभा की स्थापना काका साहिब गाडगिल, मामा साहब देवगिरिकर आदि नेताओं की प्रेरणा और आदेश पर राष्ट्रभाषा प्रचार का कार्य स्वतंत्र रूप से आरम्भ करने के लिए हुई। देश की प्रमुख स्वैच्छिक हिन्दी प्रचार संस्थाओं में से एक महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, बम्बई की परीक्षाएँ, प्रकाशन, यात्राएँ भवन, मुद्रणालय, ग्रंथालय और अध्यापन मंदिर आदि इसकी स्थायी सम्पत्ति हैं। सभा की प्रबोध, प्रवीण, पंडित और पद्म परीक्षाएं केन्द्रीय सरकार द्वारा क्रमश: मैट्रिक, इण्टर, बी.ए. और एम.ए. के समकक्ष स्वीकृत हैं। सभा ने दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें हिन्दी से मराठी और मराठी से हिन्दी रचनाओं का अनुवाद प्रमुख है। बृहद् हिन्दी मराठी शब्दकोश, कवीन्द्र चन्द्रिका, पर्वताख्यान, फूलबन तथा जगनामा आदि प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
प्रकाशित पत्रिका : राष्ट्रवाणी (मासिक ), संपादक : प्रा.सु.मो.शाह।
पता : महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे, ३८७, नारायण पेठ, पुणे-४११०३० (महाराष्ट्र )

अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, नई दिल्ली
स्थापना : ४ अगस्त, १९६४ ई.
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के प्रयत्न तथा हिन्दी प्रचार करने वाली परीक्षा-मान्यता प्राप्त संस्थाओं के सहयोग से दिल्ली में इस संघ की स्थापना की गई।
उद्देश्य : 
१. संविधान की धारा ३५१ के अनुसार हिन्दी के प्रचार और विकास के लिए राष्ट्रीय मंच की स्थापना करना।
२. हिन्दी के प्रचार तथा विकास के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत की विभिन्न स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
३. विभिन्न स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं द्वारा संचालित हिन्दी परीक्षाओं के स्तर में एकात्मकता स्थापित करना।
४. भारत सरकार तथा राज्य सरकारों अथवा अन्य किसी संस्था द्वारा संघ को भेजे गए हिन्दी के प्रचार और विकास से संबंधित किसी भी मामले पर सलाह और सहायता देना।
५. ऐसे किसी भी अन्य कार्यकलाप को हाथ में लेना, जो संघ की राय में हिन्दी के प्रचार और कार्य में सहायक हो।
कार्य और कार्य पद्धति : ंघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निम्नलिखित कार्य कर रहा है :
प्रचारात्मक कार्य : 
क. संघ की ओर से पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में भारत की स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के कार्यकलापों का अध्ययन करने, उनकी समस्याओं का अध्ययन एवं समाधान कराने, हिन्दी के प्रचार और प्रसार की दृष्टि से आवश्यक योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए क्षेत्रीय हिन्दी प्रचारकों, कार्यकर्ताओं के शिविरों का आयोजन।
ख. अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन तथा शिविरों का आयोजन।
ग. हिन्दी तथा हिन्दीतर प्रदेशों के विद्वानों के भाषणों की व्यवस्था।
घ. हिन्दीतर भाषी वरिष्ठ साहित्यकारों की हिन्दी प्रदेशों में सद्भावना यात्राएँ।
ड. स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
च. हिन्दीतर भाषी लेखकों की पुस्तकों की प्रदर्शनी का आयोजन।
छ. सदस्य संस्थाओं के बीच समन्वय, सामंजस्य के लिए सद्भावना यात्राएँ।
ज. गंगाशरण संह अखिल भारतीय वाक् स्पर्धा का आयोजन।
शिक्षण कार्य :
हिन्दी परीक्षा के माध्यम द्वारा होने वाले प्रचार कार्य का मूल्यांकन करना। हिन्दीतर प्रदेशों में हिन्दी शिक्षण और शिक्षकों की कठिनाइयों के बारे में विचार विनिमय। संस्थाओं द्वारा होने वाले हिन्दी प्रचार और शिक्षणात्मक कार्य-नीति के सम्बन्ध में विचार करना।
साहित्यिक कार्य :
           हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों तथा हिन्दी साहित्यकारों की संगोष्ठियों सम्मेलनों का आयोजन करना। हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों तथा छात्रों का अभिनन्दन करना। हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों की रचनाओं का संस्थाओं के सहयोग से प्रकाशन कराना। पत्रिका का प्रकाशन करना। प्रदेशों की परिचयात्मक एवं वार्तालाप गाइडों का प्रकाशन करना एवं राष्ट्रभाषा प्रचार का इतिहास तथा अन्य प्रकाशन।
           इसके अतिरिक्त नई परीक्षाओं को मान्यता दिलाने संबंधी कार्य, हिन्दी सलाहकार समितियां में संघ तथा उसकी सदस्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों को केन्द्रीय हिन्दी समिति तथा विभिन्न मंत्रालयों में गठित हिन्दी सलाहकार समितियों में नामित किया जाना, स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं द्वारा संचालित हिन्दी परीक्षाओं के लिये आदर्श पाठ्यक्रम तैयार करना एवं त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशन करना भी इस संस्था के महत्वपूर्ण कार्य हैं।
पता : अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान संघ, ३४, कोटला मार्ग, नई दिल्ली-११०००७.

अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद (उ.प्र. )
स्थापना : ४ मार्च १९८८ (चाँदपुर, बिजनौर ) में।
उद्देश्य :
१. हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना और सामयिक गोष्ठियाँ आयोजित करना।
२. साहित्यकारों को संगठित एवं प्रोत्साहित करना।
३. नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना।
४. सांस्कृतिक चेतना व राष्ट्रीय सौहार्द्र को बढ़ाना।
५. अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित कराकर उसे लोकार्पित कराना और साहित्य जगत में सहृदय रचनाकारों एवं समर्पित साहित्य-सेवियों को नि:शुल्क भेंट करना।
६. समारोह और स्तरीय काव्य-गोष्ठियों में साहित्यकारों को 'साहित्यश्री', 'कलाश्री' एवं 'पत्रकारश्री' की उपाधियों से विशिष्ट क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित करना और हिन्दी में शोधकार्य कराना।
७. चेतना, चरित एवं एकता संवर्द्धन पर समाज का ध्यान केन्द्रित करना।
८. साहित्यकारों के सम्मान एवं हिन्दी के विकास-प्रचार-प्रसार हेतु, मुख्यालय पर स्थायी हिन्दी भवन का निर्माण और कम-से-कम दस लाख की राशि की एक स्थायी हिन्दी निधि-कोष की स्थापना और पुस्तकालयों की स्थापना।
पता : डॉ. महेश 'दिवाकर', अखिल भारतीय कला मंच, चांदपुर (बिजनौर ), उ.प्र.

भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद्, मुम्बई (महाराष्ट्र )
स्थापना : २००३
उद्देश्य :
१. भारत के संविधान के अनुच्छेद ५१ (क ) में दिए दिशा निर्देश के अनुसार मजहब, भाषा, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग का भेदभाव किए बिना भारतीय समाज के हित के संवर्धन में सहायक होगा।
२. भारत में राष्ट्रहित वाली भाषा नीति को लागू कराने के लिए हर संभव प्रयास करना जिससे सबको समान अवसर प्राप्त हों, साक्षरता बढ़े व गॉंवों के विकास एवं राष्ट्र के संसाधनों से जुड़ा शोध हो।
३. भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में सम्मिलित भारतीय भाषाओं में आपस में ताल-मेल बढ़ाना एवं शिक्षा, व्यवसाय, शोध इत्यादि सहित जीवन के हर क्षेत्र में उनके प्रतिष्ठापन हेतु प्रचार, प्रसार, विचार विमर्श एवं जन हित याचिका सहित हर संभव प्रयास करना।
४. भारतीय संविधान की अष्टमअनुसूची में सम्मिलित भारतीय भाषाओं के प्रतिष्ठापन के लिए प्रयत्नशील संस्थाओं की संयुक्त परिषद के रूप में कार्य करना एवं उनमें समन्वय स्थापित करना है।
५. परिषद के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पत्र पत्रिका, प्रचार सामग्री प्रकाशित करना एवं अन्य सहायक गतिविधियों जैसे संगोष्ठियों, बैठकों एवं सभाओं का आयोजन एवं संचालन एवं दृश्य साधनों का प्रदर्शन करना।
पता : भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद् (पंजी. ), एफ-६/१, सेक्टर-७ (मार्केट ), वाशी, नवी मुम्बई-४००७०३


स्त्रोत - अनुरोध

Thursday, September 23, 2010

सोच तो लो जाना कहां है विषय पर व्याख्यान संपन्न






दर्शक दीर्घा में मौजूद प्रोफेसर एवं विद्यार्थी

दर्शक दीर्घा में मौजूद प्रोफेसर एवं विद्यार्थी

मंच पर उपस्थित गणमान्य





गुजराती के साहित्यकार  दिनकर जोशी वक्तव्य देते हुए

अतिथि परिचय एवं प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए सहायक प्राध्यापक डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey)




हिन्दी विभाग एवं हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) दीपप्रज्जवल करते हुए 


के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय उपप्राचार्य प्रो. कन्नन दीपप्रज्जवल करते हुए साथ  डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey)






Tuesday, September 21, 2010

हिन्दी विश्व चेतना की संवाहिका है- डाॅ. करुणाशंकर उपाध्याय

हिन्दी विश्व चेतना की संवाहिका है- 
डा. करुणाशंकर उपाध्याय


के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय,मुंबई में हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन के अवसर पर बोलते हुए सुप्रसिद्ध समीक्षक डा. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि वतर्मान समय में हिन्दी विश्वचेतना की संवाहिका बन रही है। भारत की विकासमान अंतर्राष्ट्रीय हैसियत इसके लिए वरदान सिद्ध हो रही है। आज विश्व स्तर पर इसकी व्याप्ति की अनुभूति की जा सकती है। यह बहुराष्ट्रीय निगमों, बाजार की शक्तियाँ तथा नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत तेजी से प्रयुक्त हो रही है, भले ही इसेक पीछे इन शक्तियों की लाभ वृत्ति काम कर रही हो। इस अवसर पर बोलते हुए कलाकार अभिनेता सुरेन्द्र पाल ने छात्रों को हिन्दी के प्रित रूचि दिखाने के लिए बधाई दी तथा धारवाहिक महाभारत में आचार्य द्रोण की भूमिका के रूप में प्रस्तुत कतिपय संवादों को बोलकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस मौके पर महाविद्यालय के प्रबंध न्यासी तथा गुजराती के प्रसिद्ध साहित्यकार दिनकर जोशी ने हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन पर अपनी प्रसन्नता जाहिर की, साथ ही हिन्दी को दिलों से जोडनेवाली भाषा बतलाया। महाविद्यालय की प्राचार्या डा. लिली भूषण ने अतिथियों का पिरचय देते हुए स्वागत किया। कार्यक्रम का सूत्र संचालन हिन्दी विभाग के व्याख्याता.डाॅ.वेदप्रकाश दुबे (Dr.Vedprakash Dubey) ने किया। अंत में प्रा. डा. स्वप्ना दत्ता ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के उपप्राचार्य प्रो. वी. एस. कन्नन, कला संकाय की संयोजिका प्रो. सुमिता कनौजिया, हिन्दी साहित्य परिषद की भारती यादव, हादिर्क भट्ट, सरिता बिन्द, प्रीति यादव, नरेन्द्र तिवारी, संतोष यादव, अनिल बिन्द, रीतु, शशिकला, सीमा मेहरा के अलावा महाविद्यालय के तमाम प्राध्यापक और विद्यार्थी भारी संख्या में उपस्थित थे।